प्रीति तौ मरिबौऊ न बिचारै।
निरखि पतंग ज्योति पावक ज्यौ, जरत न आपु सँभारै।।
प्रीति कुरंग नाद मन मोहित, बधिक निकट ह्वै मारै।
प्रीति परेवा उड़त गगन त, गिरत न आपु सँभारै।।
सावन मास पपीहा बोलत, पिय पिय करि जु पुकारै।
'सूरदास' प्रभु दरसन कारन, ऐसी भाँति बिचारै।। 3290।।