जनि कोउ काहू कै बस होहि।
ज्यौ चकई दिनकर बस डोलत, मोहिं फिरावत मोहिं।।
हम तौ रीझि लट भई लालन, महा प्रेम तिय जानि।
बधन अवधि भ्रमतिं निसिबासर, को सुरझावत आदि।।
उरझे सग अगअगनि प्रति, विरह बेलि की नाई।
मुकुलित कुसुम नैन निद्रा तजि, रूप सुधा सियराई।।
अति आधीन हीनमति व्याकुल, कहँ लौ कहौ बनाई।
ऐसौ प्रीति रीति रचना पर, 'सूरदास' बलि जाई।। 3291।।