प्रभु, तुम दीन के दुख-हरन।
स्यामसुंदर, मदन-मोहन, बान असरन-सरन।
दूर देखि सुदामा आवत, धाइ परस्यौ चरन।
लच्छ सों बहु लच्छ दौन्हौ, दान अवढर-ढरन।
छल कियौ पांडवनि कौरव, कपट-पासा ढरन।
ख्वाय विष, गृह लाय दीन्हौ, तउ न पाए जरन।
बूड़तहिं ब्रज राखि लीन्हौ, नखहिं गिरिवर धरन।
सूर प्रभु कौ सुजस गावत, नाम-नौका तरन।।202।।
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