(प्यारी) नदनँदन वृषभानुकुँवरि सौ खेलत फाग ठह्यौ।
उडत गुलाल कुमकुमा आली अबर छाइ रह्यौ।।
अलिसुत जुग बरन्यौ बकट छवि जलसुत अधर लह्यौ।
खज मीन मुकताहल मानी रविरथ खैचि रह्यौ।।
हँसि मुसुकात सहज स्वारथ कौ रमनिहि रूप थह्यौ।
दारी दरनि अरुन अति सोभा मनु ससि ग्रहन गह्यौ।।
गोपी ग्वाल सिमिटि सब सुंदर सज्यौ सिंगार नह्यौ।
बरखत कंचन नीर कुसुम जल मनु घन गरजि रह्यौ।।
स्यामा स्याम सबै सुखदाई सुखसागर सगरी।
'सूरदास' प्रभु मिली कृपा करि जिनि हृदये बिसरी।। 131 ।।