पूरनता इन नैननि पूरे।
तुम पुनि कहत सुनति हम समुझति, येही दुख अति मरत बिसूरे।।
हरि अंतरजामी सब बूझति, बुद्धि बिचारि सु बचन समूरे।
वै हरि रतन रूप सागर के, क्यौ पाइयै खनावत घूरे।।
रे अलि चपल मोदरस लंपट, कटु संदेस कथत कत चूरे।
कह मुनि ध्यान कहाँ ब्रजवासिनि कैसै जात कुलिस कर चूरे।।
देखि बिचारि प्रगट सरिता सर, सीतल सजल स्वाद रुचि रूरे।
'सूर' स्वाति की बूँद लगी जिय, चातक चित लागत सब झूरे।।3576।।