अब अलि नैननि प्रकृति परी।
हरि मुख कमल बिना निरखे तै, रहत न एक घरी।।
सूखे सर सरोज संपुट भए, कौन अधार जिऐ।
मधु मकरंद पियत मधुकर ते, कैसै गरल पिऐं।।
तुमहू जात प्रेम के लालच, कानि सूल जिय जानि।
तन त्यागे नीकौ लागत पै, सहत न परसन पानि।।
हरि हित वारि कहू ब्रज बरषन, बारिज करै विकास।
'सूर' अंबु लौ जरत मरत नहि, करत भँवर की आस।।3575।।