पुनि-पुनि कंस मुदित मन कीन्हौ।
दूतहिं प्रगट कही यह बानी, पत्र नंद कौं दीन्हौ।
कालीदह के कमल पठावहु, तुरत देखि यह पाती।
जैसैं काल्हि कमल ह्याँ पहुँचै, तू कहियौ इहिं भाँति।
यह सुनि दूत तुरतहीं धायौ, तब पहुँच्यौ ब्रज जाइ।
सूर नंद-कर पाती दीन्हीं, दूत कह्यौ समुझाइ।।525।।