खेलन चले नंद-कुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



खेलन चले नंद-कुमार।
दूत आवत जानि ब्रज मैं, आपु दीन्ह्यौ टार।
नंद जमुना न्हाइ आए, महरि ठाढ़ी द्वार।
नृपति दूत पठाइ दीन्ह्यौ, चल्यौ ब्रज इहिं कार।
महर पैठत सदन भीतर, छींक बाई धार।
सूर नंद कहत महरि सौं, आजु कहा बिचार।।524।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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