पिय छबि निरखि हँसति तिय भारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


पिय छबि निरखि हँसति तिय भारी।
कहा महाउर पाग रँगाई, यह सोभा इक न्यारी।।
अरुन नैन अलसात देखियत, पलक पीक लपटानौ।
अधर दसन छत, वदन राजत, बंधुक पर अलि मानौ।।
हृदय रुचिर मोतिनि की माला, नखरेखा तिहिं तीर।
बिनु गुन माल 'सूर' के स्वामी, कुंकुम स्याम सरीर।।2537।।

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