धन्य आजु यह दरस दियौ।
धन्य धन्य जासौ अनुरागे, तब जान्यौ नहिं और वियौ।।
भले स्याम वह भली भावती, भले भली मिलि भली करी।
यह मेरै जिय अतिहि अचंभौ, तौ बिछुरत क्यौ एक घरी।।
जाहु तहीं, सुख दीन्हौ मोकौ, वै सुनिकै रिस पावँगी।
'सूर' स्याम अति चतुर कहावत, बहुरो मन न मिलावैगी।।2538।।