नैन परे हरि पाछै री।
मिले अतिहिं अतुराइ स्याम कौ, रीझे नटवर काछै री।।
निमिष नही लागत इकटकही, निसि बासर नहिं जानत री।
निरखत अंग अंग की सोभा, ताही पर रुचि मानत री।।
नैन परे परबस री माई, उनकौ इनि बस कीन्हे री।
'सूरज' प्रभु सेवा करि रिझए, उनि अपने करि लीन्हे री।।2236।।