नैना सावन भादी जीने।
इनही विपम आनि राखे मनु, समुदनि है रीते॥
बै झर लाइ दिना द्वै उघरत, ये न भूलि मग देत।
वै वरषत सबके सुख कारन, ये नदनदन हेत॥
वै परिमान पुजै हद मानत, ये दिन धार न तोरत ।
यह बिपरित होति देखति हो, बिना अवधि जग वोरत ।
मेरे जिय ऐसी आवत, भइ चतुरानन की साझ ॥
'सूर' बिन मिले प्रले जानिबो, इनकी द्यौसनि माँझ॥3235॥