निसि दिन बरषत नैन हमारे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


निसि दिन बरषत नैन हमारे।
सदा रहति बरषा रितु हम पर, जब तैं स्याम सिधारे।
दृग अंजन न रहत निसि बासर, कर कपोल भए कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहूँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल सबै भइ काया, पल न जात रिस टारे।
'सूरदास' प्रभु यहै परेखौ, गोकुल काहै बिसारे।। 3236।।

सूरदास प्रभु है परेखौ, गोकुल काहैं बिसारे

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