निठुर बचन जनि कहौ कन्हाई। अतिही दुसह सह्यौ नहिं जाई।।
तुम हँसि कै बोलत ये बानी। मेरै नैन भरत है पानी।।
अब ये बोल कबहुँ जनि बोलौ। तुरत चलहु व्रज आँगन डोलौ।।
पथ निहारति जसुमति ह्वै है। धाइ आइ मारग मैं लैहै।।
तब नंदहि हलधर समुझावत। कछु करि काज तुरत व्रज आवत।।
जननि अकेली व्याकुल ह्वै है। तुमहिं गऐ कछु धीरज लैहै।।
बहुत कियौ प्रतिपाल हमारौ। जाइ कहाँ उर ध्यान तुम्हारौ।।
व्याकुल होन जननि जनि पावै। बार बार कहि कहि समुझावै।।
व्याकुल नंद सुनत यह बानी। डसी मनौ नागिनी पुरानी।।
व्याकुल सखा गोप भए व्याकुल। अंतकदसा भए भयआकुल।।
'सूर' स्याम मुख निरखत ठाढ़े। मनौ चितेरे लिखि सब काढ़े।।3115।।