नंद बहुनायकी, अनतहि रहे जाई।
वह अभिलाष करति रही, ताकौ बिसराई।।
बासर ऐसैही गयौ, निसि जाम तुलानी।
नारि परी अति सोच मै, बिरहा अकुलानी।।
आवन कहि गए साँझहीं, अजहूँ नहिं आए।
कीधौ कतहूँ रमि रहे, फँग परे पराए।।
वेई है बहुनायकी, लायक गुन भारे।
'सूर' स्याम कुमुदा भवन, सुधि करि पगु धारे।।2709।।