दोउ कर जोरि भए सब ठाढ़े। धन्य धन्य भक्तनि के चाढ़े।।
तुम भुक्ता तुमहीं पुनि दाता। अखिल-व्रह्मांड-लोक के ज्ञाता।।
तुमकौं भोजन कौन करावै। हित कैं बस तुमकौं कोउ पावै।।
तुम लायक हमरैं कछु नाहीं। सुनत स्याम ठाढ़े मुसुकाहीं।।
ललिता सखी देवता चीन्हौ। चंद्रावलि राधहिं कहि दीन्हौ।।
देव बड़ौ यह कुँवर कन्हाई। कृपा जानि हरि ताहि चिन्हाई।।
सूर स्याम कहि प्रगट सुनाई। भए तृप्त भोजन दिवराई।।918।।