देखौ माई माधौ राधा क्रीरत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


देखौ माई माधौ राधा क्रीरत।
सुरत समय संतोष न मानत, फिरी-फिरी अंक भरत।।
मुख कै अनिल सुखावत स्रम-जल, कह छबि मनहिं हरत।
मानहुं काम अगिनी निरज्वल भइ, ज्वाला फेरि करत।।
द्वितीय प्रेम की रासि लाड़िली, पलकनि बीच धरत।
सूर स्याम स्यामा सुख क्रीड़त, मनसिज पाइ परत।।1200।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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