नागरता की रासि किसोरी।
नव-नागर-कुल-मूल सांवरौ, बरबस कियौ चितै मुख मोरी।।
रूप रुचिर अँग-अँग माधुरी, बिनु भूषन भूषित ब्रज-गोरी।
छिन-छिन कुसल सुगंध अंग मैं, कोक-रभस रस-सिंधु झकोरी।।
चंचल रसिक मधुप मोहन मन, राखे कनक कमल कुच कोरी।
प्रीतम नैन जुगल खंजन खग, बाँधे बिबिध निबंधनि डोरी।।
अबनी उदर, नाभि सरसी मैं मनहुं कछुक मादक मधुरौ री।
सूरदास पीवत सुंदर बर, सीव सुदृढ़ निगमनि की तोरी।।1201।।