देखि सखि तीस भानु इक ठौर -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग बिलावल




देखि सखि तीस भानु इक ठौर।
ता ऊपर चालीस बिराजत रुचि न रही कुछ और।।
धर तै गगन गगन तै धरती ता बिच रहे बिस्तार।
गुन निर्गुन सागर की सोभा बिनु रबि भयौ भिनुसार।।
कोटिनि कोटि तरंगै उपजति जोग जुगति चित ल्याउ।
'सूरदास' प्रभु अकथ कथा कौ पंडित भेद बताउ।। 50 ।।

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