देखि रूप सब नगर के लोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी



देखि रूप सब नगर के लोग।
बारंबार असीस देत है हरि घर बन्यौ रुकमिनी जोग।।
जौ विधि करि आनत चतुराई, और समुझ जग की सब रीति।
तौ अजहूँ ये राजसुता कौ, लै जैहै सिसुपालहि जीति।।
जे राजा कौतुक चलि आए, ते मुख निरखि कहत है बात।
परत न पलक चकोर चंद लौ, अवलोकत लोचन न अघात।।
मनसा के दाता पूरन है, सुंदर वर वसुदेव कुमार।
'सूरदास' जाकै जिय जैसी, हरि कीन्हौ तैसौ व्यौहार।। 4179।।

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