देखि इंद्र मन गर्व बढ़ायौ। ब्रज लोगनि मोकौं बिसरायौ।।
अहिर जाति ओछी मति कीन्ही। अपनी ज्ञाति प्रकट करि दीन्हो।।
पूजत गिरिहि कहा मन आई। गिरि समेत ब्रज देउँ बहाई।।
देखौं धौं कितनौ सुख पैहैं। मेरैं भारत काहि मनैहैं।।
परबत तब इनकौं क्यौं राखत। बारंबार यहै कहि भाखत।।
पूजत गिरि अति प्रेम बढ़ाए। सपनैं कौ सुख लेत मनाए।।
सूरदास सुरपति की बानी। ब्रज बोरौं परलै के पानी।।907।।