तुरत तहाँ सब बिप्र बुलाए। जग्यारंभ तहाँ करवाए।।
सामवेद द्विज गान करत तहँ। देखत सुर वियके अंबर महँ।।
सुरपति-पूजा तबहिं मिटाई। गिरि गोबर्धन तिलक चढ़ाई।।
कान्ह कह्यौ गिरि दूध अन्हावहु। बड़े देवता इनहिं बहर कौ।
गोवर्धन दूधहिं अन्हवाए। देवराज कहि माथ नवाए।।
नयौ देवता कान्ह पुजावत। नर-नारी सब देखन आवत।।
सूर स्याम गोबर्धन थाप्यौ। इंद्र देखि रिस करि तनु काँप्यौ।।906।।