तुव मुख देखि डरत ससि भारी।
कर करि कै हरि हेरयौ चाहत, भाजि पताल गयौ अपहारी।
वह ससि तौ कैसहु नहिं आवत, यह ऐसी कछु बुद्धि बिचारी।
बदन देखि बिधु बुधि सकात मन, नैन कंज कुंडल उजियारी।
सुनौ स्याम तुमकौं ससि डरपत, यहै कहत मैं सरन तुम्हारी।
सूर स्याम बिरुझाने सोए, लिए लगाइ छतिया महतारो।।196।।