लै लै मोहन, चंदा लै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



लै लै मोहन, चंदा लै।
कमल नैन बलि जाउँ सुचित ह्वै, नीचैं नैंकु चितै।
जा कारन तैं सुनि सुत सुदंर, कीन्ही इति अरै।
सोइ सुधाकर देखि कन्हैया भाजन माँहि परै।
नभ तैं निकट आनि राख्यौ है, जल-पुट जतन जुगै।
लै अपने कर काढ़ि चंद कौं, जो भावै सो कै।
गगन-मँडल तैं गहि आन्यौ है, पंछी एक पठै।
सूरदास प्रभु इती बात कौं कत मेरौ लाल हठै।।195।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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