तुम तौ कहत सँदेसौ आनि।
कहा कहै वा नंदनँदन सौ, होत नहीं हित हानि।।
जुगुति मुकुति किहिं काज हमारै, जदपि महा सुख खानि।
सनी सनेह स्याम सुंदर सौ, हिलि मिलि कै मन मानि।।
सोहत लोह परसि पारस कौ, ज्यौ सुबरन बर बानि।
पुनि वह कहा चारु चुबंक सौ, लटपटाइ लपटानि?
रूप रहित निरगुन नीरस नित, निगमहु परत न जानि।
'सूरजदास' कौन विधि तासौ, अब कीजै पहिचानि।। 3541।।