मधुकर भली सुमति यह खोई।
हाँसी होन लगी है ब्रज मैं, जोगहिं राखहु गोई।।
आतम ब्रह्म लखावत डोलत, घट घट व्यापक जोई।
चाँपे काँख फिरत निरगुन गुन, इहाँ न गाहक कोई।।
प्रेमकथा सोई पै जानै, जा पै बीती होई।
तू नीरस एती कह जानै, बूझि देखियै लोई।।
बडौ दूत तू बड़ी ठौर कौ, बड़ी बुद्धि सु बड़ोई।
'सूरदास' पूरो दै पटपद, कहत फिरत है सोई।।3542।।