तुम्हैं पहिचानति नाहीं बीर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
तुम्हैं पहिचानति नाहीं बीर।
इन नैननि कबहूँ नहिं देख्यौ, रामचंद्र कै तीर।
लंका बसत दैत्य अरु दानव, उनके अगम सरीर।
तोहिं देखि मेरौ जिय डरपत, नैननि आवत नीर।
तब करि काढि़ अँगूठी दीन्हीं, जिहिं जिय उपज्यौ घीर।
सूरदास प्रभु लंका-कारन, आए सागर-तीर॥86॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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