तहँइ जाहु जहँ रैनि गँवाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


तहँइ जाहु जहँ रैनि गँवाई।
काहे को मुँह परसन आए, जानति हौ चतुराई।।
वाके गुन मन तै नहिं टारत, बोलत नाही बैन।
या छवि पर मैं तन मन वारौ, पीक बिराजत नैन।।
भली करो यह दरस दिखायौ, तातै नैन सिराने।
'सूर' स्याम निसि कौ सुख लूट्यौ, हमकौ मया विहाने।।2505।।

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