जाकौ मनमोहन अंग करै।
ताकौ केस खसै नहिं सिर तैं, जौ जग बैर परै।
हिरनकसिपु-परहार थक्यौ, प्रहलाद न नैंकु डरै।
अजहूँ लगि उत्तानपाद-सुत, अविचल राज करै।
राखी लाज द्रुपद तनया की, कुरुपति चीर हरै।
दुरजोधन कौ मान भंग करि बसन प्रबाह भरै।
जो सुरपति कोप्यौ ब्रज ऊपर क्रोध न कछू सरै।
ब्रज-जन राखि नंद कौ लाला, गिरिधर बिरद धरै।
जाकौ बिरद है गर्व-प्रहारी, सो कैसैं बिसरै?
सूरदास भगवंत-भजन करि, सरन गए उबरै।।37।।