जाकै रूप वरन बपु नाही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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उद्धव वचन


      
जाकै रूप वरन बपु नाही। नैन मूंदि चितवौ मन माही।।
हृदय कमल तै जोति विराजै। अनहद नाद निरतर बाजै।।
इड़ा पिगला सुपमन नारी। सहज सुन्न मै बसहि मुरारी।।
माता पिता न दारा भाई। जल थल घट घट रह्यौ समाई।।
इहिं प्रकार भव दुस्तर तरिहौ। जोग पंथ क्रम क्रम अनुसरिहौ।।

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