हम व्रजबाल गोपाल उपासी। ब्रह्मज्ञान सुनि आवै हाँसी।।
व्रज मै जोग कहाँ तै ल्यायौ। कुबिजा कूबर माहि दुरायौ।।
स्याम सुगाहक पाइ दिखायौ। सो माधव तुम हाथ पठायौ।।
हम अबला ठगी विवस अहेरी। सो ठग ठग्यौ कंस की चेरी।।
राम जनम सीता जु दुराई। वधू भई अब कुबिजा पाई।।
तब सीता वियोग दुख पायौ। अब कुबिजा पै हियौ सिरायौ।।
नीरस ज्ञान कहा लै कीजै। जोग मोट दासी सिर दीजै।।