जाकी जैसी वानि परी री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली


जाकी जैसी वानि परी री।
कोऊ कोटि करै नहि छूटै, जो जिहिं धरनि धरी री।।
वारे ही तै इनके ये ढँग, चंचल चपल अनेरे।
बरजतही बरजत उठि दौरे, भए स्याम के चेरे।।
ये उपजे ओछे नछत्र के, लंपट भए बजाइ।
'सूर' कहा तिनकी संगति, जे रहे पराऐ जाइ।।2396।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः