नैना भए पराए चेरे।
नंदलाल कै रंग गए रँगि, अब नाहिंन बस मेरै।।
जद्यपि जतन किये जोगवति ही, स्यामल सोभा घेरै।
त्यौ मिलि गए दूध पानी ज्यौ, निबरत नही निबेरै।।
कुल अंकुस आरजपथ तजिकै, लाज सकुच दिए डेरै।
'सूर' स्याम कै रूप लुभाने, कैसैहुँ फिरत न फेरै।।2395।।