जसुदा, नार न छेदन दैहौं।
मनिमय जटित हार ग्रीवा कौ, वहै आजु हौं लैहौं।
औरनि के हैं गोप-खरिक बहु, मोहिं गृह एक तुम्हारौ।
मिटि जु गयौ संताप जनम कौ, देख्यौ नंद-दुलारौ।
बहुत दिननि की आसा लागी, झगरिनि झगरौ कीनौ।
मन मैं विहँसि तबै नँदरानी, हार हिये कौ दीनौ।
जाकैं नार आदि ब्रह्मादिक, सकल-विस्व-आधार।
सूरदास प्रभु गोकुल प्रगटे, मेटन कौं भू-भार॥15॥