झगरिनि तैं हौं बहुत खिझाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग देवगांधार


झगरिनि तैं हौं बहुत खिझाई।
कंचन-हार दिऐं नहिं मानति, तुहीं अनोखी दाई।
बेगिहिं नार छेदि बालक कौ, जाति बयारि भराई।
सत संजम तीरथ-व्रत कीन्हैं, तब यह संपति पाई।
मेरौ चीत्यौ भयौ नँदरानी, नंद-भुवन सुखदाई।
दीजै बिदा, जाउँ घर अपनैं, काल्हि साँझ की आई।
इतनी सुनत मगन ह्वै रानी बोलि लए नँदराई।
सूरदास कंचन कै अभरन लै झगरिनि पहिराई॥16॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः