जब जदु-कुल-पति कंसहि मारयौ। तिहूँ भुवन भयौ सोर पसारयौ।।
तुरत मंच तै धरनि गिरायौ। ऐसैहि मारत बिलंब न लायौ।।
केस गहे पुहुमी घिसटायौ। डारि जमुन के बीच बहायौ।।
जा कंसहि तिहुँ भुवन डराई। ताकौं मारयौ हलधर भाई।।
जाकै धनुष टँकोरत हाथा। आसन डारि भजे सुरनाथा।।
मारत ताहि बिलंब न कीन्हौ। उग्रसेन कौ राजस दीन्हौ।।
जै हो जै वसुदेव कुमारा। जै हो जै तुम नंददुलारा।।
सुरदेवी देवै धनि मैया। धनि जसुमति त्रिभुवन पति धैया।।
धन्य अकूर मधुपुरी ल्याए। सुर अंबर जै जै धुनि गाए।।
दनुज बंस निरबंस कराए। धरनी सिर तै भार गँवाए।।
मातु पिता बंदि तै छुड़ाए। यह बानी सुर लोकनि गाए।।
जो जैसौ तैसै तिहि भाए। 'सूरज' प्रभु सबकौ सुखदाए।।3095।।