चितवतहीं सब गए झुराई। सकुचि कह्यौ कापर रिस पाई।।
छमा करौ आयसु हम पावैं। जापर कहौ ताहि पर धावैं।।
सैन सहित प्रभु हमहिं बुलाए। आज्ञा सुनत तुरत उठि धाए।।
ऐसौ कौन जाहि प्रभु कोपे। जीव नाम सब तुम्हरेहिं रोपे।।
सूर कहो यह मेघनि बानी। यह सुनि सुनि रिस कछुक बुझानी।।927।।