चलहु सखी जैयै राधा-घर।
बूझैं बात कहा धौं कैहै, निधरक है कै मन डर।।
कीधौं हमहिं देखि भजि जैहै, की उठि हमकौं मिलिहै।
कीधौं बात उधारि कहैगी, की मनहीं मन गिलिहै।।
कीधौं हँसि बोलै, की रिस करि, कीधौं सहज सुभाइ।
कीधौं सूर स्याम रस-माती, जोबन–गर्ब बढ़ाइ।।1726।।