चलत लाल पैजनि के चाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



चलत लाल पैजनि के चाइ।
पुनि-पुनि होत नयौ-नयौ आनँद, पुनि-पुनि निरखत पाइ।
छोटौ बदन छोटियै झिंगुली, कटि किंकनी बनाइ।
राजत जंत्र-हार, केहरि-नख पहुँची रतन-जराइ।
भाल तिलक पख स्याम चखौड़ा जननी लेति बलाइ।
तनक लाल नवनीत लिए कर, सूरज बलि-बलि जाइ।।133।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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