घटा मधुवन पर बरषै जाइ।
हरि घन स्याम बिना सब बिरहिनि बेलि गई कुम्हिलाइ।।
उग्र तेज जनु भानु तपत ससि, व्याकुल मन अकुलाइ।
करै कहा उपचार सखीरी, नैकु न तपनि बुझाइ।।
कमल नयन की सुरति जु आवत, तबहि उठति तन ताइ।
‘सूर’ सुमिरि गुन स्याम सुदर के, सखी रही मुरकाइ।। 3311।।