ग्वालिनि छाँड़ि दै बिरह खरयौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


ग्वालिनि छाँड़ि दै बिरह खरयौ।
तेरै बिरह बिरहिनी व्याकुल, भुवन काज बिसरयौ।।
कर पल्लव उडुपति रथ खैच्यौ, मृग पति वैर करयौ।
पखी पति सबही सकुचाने, चातक अनँग भरयौ।।
सारँग सुर सुनि भयौ वियोगी, हिमकर गरब टरयौ।
'सूरदास' सायर-सुत-हित-पति, देखत मदन हरयौ।। 3392।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः