गैयनि घेरि सखा सब ल्‍याए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


                                
गैयनि घेरि सखा सब ल्‍याए।
देख्‍यौ कान्‍ह जात बृंदाबन, यातैं मन अति हरष बढ़ाए।
आपुस मैं सब करत कुलाहल, धौरी, धूमरि धेनु बुलाए।
सुरभी हाँकि देत सब जहँ-तहँ, टेरि-टेरि हेरी सुर गाए।
पहुँचे आइ बिपिन घन वृंदा, देखत द्रुम दुख सबनि गँवाए।
सूरस्‍याम गए अघा मारि जब, ता दिन तैं इहिं बन अब आए।।447।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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