क्यौ मोहन दर्पन नहिं देखत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ललित


क्यौ मोहन दर्पन नहिं देखत।
क्यौ धरनी पगनखनि करोवत, क्यौ हम तन नहि पेखत।।
क्यौ ठाढ़े बैठत क्यौ नाही, कहा परी हम चूक।
पीतांबर गहि कह्यो बैठिये, रहे कहा ह्वै मूक।।
उघरि गयौ उर तै उपरैना, नखछत, बिनु गुन माल।
'सूर' देखि लटपटी पाग पर, जावक की छवि लाल।।2484।।

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