दर्पन लै प्यारी मुख आगै, कहति पिया छबि हेरौ जू।
मेरी सौ हा हा कहि पुनि पुनि, उत काहै मुख फेरौ जू।।
सकुचत कहा बोल कै साँचे, मेरै गृह तो आए जू।
रैनि नही तौ अब जु कृपा भई, धनि जिनि स्वाँग कराए जू।।
मेरी कही बिलग जनि मानौ, मैं तुव करत बड़ाई जू।
'सूर' स्याम सन्मुख नहि चितवत, रहे धरनि सिर नाई जू।।2483।।