को गुरु कहौ की मौन छाँड़ौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू


को गुरु कहौ की मौन छाँड़ौ।
हमहिं मूरख बदति, आप ये ढंग सधति, पाइ अब मदति, हठ कतहिं माँड़ौ।।
एकही संग हम तुम सदा रहति हैं, आजुहीं चटकि तू भई न्यारी।
भेद हमसौं कियौ मौन ब्रत कह लियौ, और कोऊ बियौ कह देहि गारी।।
कहा तोहिं भयौ, तुव प्रकृति कौनैं हरी, रीति यह नई तैंही चलाई।
सूर सुनि नागरी, गुननि की आगरी, निठुरई सौं बात कहि सुनाई।।1730।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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