तुम प्रियतम कै बैरिनि मेरी।
वासौं कहतिं मिली जो मारग, यह मोसौं अति कही अनेरी।।
कहति कहा स्यामहिं मिलि आई, मैं जकि रही सोह मोहिं तेरी।
मेरैं अँग छबि और कहति कछु, जुवती सुनत रहौ मुग हेरी।।
मैं जिनकौं सपनेहुं नहिं देख्यौ, तिनकी बात कहतिं फिरि फेरी।
सूरदास गुन-भरी राधिका, महिमा को जानै इहिं केरी।।1731।।