कैसै मिले पिय स्याम सँघाती।
कहियै कत कौन बिधि परसे, बसन कुचील छीन अति गाती।।
उठिकै दौरि अक भरि लीन्हौ, मिलि पूछी इत उत कुसलाती।
पटतै छोरि लिए कर तदुल, हरि समीप रुकमिनी जहाँ ती।।
देखि सकल तिय स्यामसुँदर गुन, पट दै औट सबै मुसक्याती।
'सूरदास' प्रभु नवनिधि दीन्ही, देत और जो तिय न रिसाती।। 4240।।