कैसे हैं नंद-सुवन कन्हाई।
दैखैं नहिं नैन भरि कबहूँ, ब्रज मैं रहत सदाई।।
सकुचति हौं इक बात कहति तोहिं, सो नहिं जाति सुनाई।
कैसैंहुँ मोहिं दिखावहु उनकौं, यह मेरैं मन आई।।
अतिहीं सुंदर कहियत हैं वै, मोकौं देहु बताई।
सूरदास राधा की बानी, सुनत सखी भरमाई।।1736।।