कुबिजा सी भागिनि को नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री


कुबिजा सी भागिनि को नारि।
कंसहि चंदन लिए जाति ही, बीच मिले ताकौ दैत्यारि।।
हरि हरि कृपा पटरानी, वाकौ डारयौ कुब्ज मिटारि।
यह बात मधुपुरी जहाँ तहँ, दासी कहत डरत जिय भारि।।
कुबिजा भूलि रहत जौ काऊ, ताहि उठत दै दै सब गारि।
सुनहु 'सूर' रानी सुनि पावै, त्रास होत जनि डारै मारि।।3106।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः