मथुरा के नरनारि कहैं।
कहाँ मिली कुबिजा चंदन लै, कहा स्याम तिहि कृपा चहै।।
कहा तपस्या करि इहिं राखी, जहाँ तहाँ पुर रहै चलै।
कछू नहीं आवत हरि देखी, इहै कह्यौ प्रभु हेत मलै।।
तबहिं कृपा करि सुदरि कीन्ही, महिमा यह कहत न आवै।
'सूरदास' भाग कूबरी कौ, कौन ताहि पटतर पावै।।3105।।